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उड़ान / अशोक कुमार

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शाम समेटती है सब कुछ
दिन के फैलाव
लम्बी दूरियाँ

थका माँदा सूरज
विश्राम लेता है

शाम ढील देती है
मन में शेष उम्मीदों को
और वे उड़ती हैं
पतंग की तरह

एक काली रात के बाद
फिर सूरज उगता है।