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उड़ीसा में मृत्यु तांडव / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'

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मृत्यु का था नृत्य तांडव
उड़ीसा था उसका नाट्य मंच।
ऐसा नाच नचा मृत्यु ने
थिरक उठे क़दम सबके।
तूफ़ान थी नटराज की मूर्ति
जिसको प्रणाम मृत्यु ने कर
ऐसा नृत्य दिखाया
जिसमें डूब गए जन-जन।
मृत्यु बनकर आई थी
प्रलय का खेल दिखाने को
जल की बूँदें तूफ़ान बनकर
आई थी सुलाने लोगों को।
मृत्यु ने पहनाया था
लोगों को चोला मृत्यु का
ऐसा चोला पहनकर सोये
सवेरा न हुआ लोगों का।
हमे चाहिए एक कर्तव्य
जिसमें लोगों के लिए हो दया भावना
जो हुए हैं तबाह अभी
उनका है जरा खयाल करना
तूफ़ान क्या है? पल भर के लिए
इंसानियत है सदा के लिए
उड़ीसा में जो मरे अभी
उनसे हमारा नाता है।