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"उतरते हुए / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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जेबों में सरकारी झिड़कियाँ लिए
 
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महँगी पोशाकों के बग़ीचे में आहि्स्ते
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हम टूटी टहनी-से झूमते रहे
 
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कितनी कमज़ोर हीन भावना लिए
 
कितनी कमज़ोर हीन भावना लिए

13:27, 26 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

दिन के ऊँचे पहाड़ से
उतरते हुए धीरे-धीरे
एड़ी से कानों तक
बज उठे मँजीरे

जेबों में सरकारी झिड़कियाँ लिए
घूमते रहे
महँगी पोशाकों के बग़ीचे में आहिस्ते
हम टूटी टहनी-से झूमते रहे
कितनी कमज़ोर हीन भावना लिए
ठहरते हुए धीरे-धीरे

चेहरे से पाँवों तक
ठहर-ठहर कर
एक टेप चिपकती गई
आँखों के भीतर की आँख
बूँद-बूँद टपकती गई
कौन हाथ बीनें वे हीरे
                      धीरे-धीरे