उतर के नाव से भी कब सफ़र तमाम हुआ,
ज़मीं पे पाँव धरा तो ज़मीन चलने लगी ।
जो दिल का ज़हर था काग़ज़ पर सब बिखेर दिया,
फिर अपने आप तबियत मिरी संभलने लगी ।
जहाँ शज़र पे लगा था तबर का ज़ख़्म 'शकेब'
वहीँ पे देख ले कोंपल नई निकलने लगी ।
उतर के नाव से भी कब सफ़र तमाम हुआ,
ज़मीं पे पाँव धरा तो ज़मीन चलने लगी ।
जो दिल का ज़हर था काग़ज़ पर सब बिखेर दिया,
फिर अपने आप तबियत मिरी संभलने लगी ।
जहाँ शज़र पे लगा था तबर का ज़ख़्म 'शकेब'
वहीँ पे देख ले कोंपल नई निकलने लगी ।