तुम्हें किस बात का अभिमान है लड़कियो
क्यों चल रही हो इस तरह उतान
सीना तान
बार-बार निहारती हो अपनी देह
लपेटती हो दुपट्टा गले में
इतराती हुई गोलाइयों पर
क्या जताना चाहती हो।
देह के बदले कुछ पाने की पुरानी आदत
क्यों नहीं छूटती तुमसे
क्यों चाहती हो दिमाग नहीं देह से पहचानी जाओ
नश्वर है यह उठान
जिसके कारण चल रही हो उतान
कब जानोगी कि तुम्हारे पहले भी थीं
रहेंगी भी उतान चलती लड़कियाँ
खिलौना बनती खिलौनों सी इस्तेमाल होती
नारीत्व के उपहार का कुछ तो रखो मान
मत चलो बहनो इस तरह उतान।