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उत्खनन / शंभुनाथ सिंह

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        उत्खनन किया है मैंने
        गहराई तक अतीत का ।

सिन्धु-सभ्यता से अब तक
मुझको एक ही स्तर मिला,
ईंट-पत्थरों के घर थे
सोने का नहीं घर मिला,

        युद्धों के अस्त्र मिले पर
        वृत्त नहीं हार-जीत का ।

यज्ञकुण्ड अग्निहोत्र के
मिले नाम गोत्र प्रवर भी
सरस्वती की दिशा मिली
पणियों के ग्राम-नगर भी

        कोई अभिलेख पर नहीं
        सामगान के प्रगीत का ।

क़ब्रों में ठठरियाँ मिलीं
टूटे उजड़े भवन मिले,
मिट्टी में ब्याज मिल गए
पर न कहीं मूल-धन मिले,

        आदमी मिला कहीं नहीं
        जीवित साक्षी व्यतीत का ।

मिट्टी के खिलौने मिले
चित्रित मृतभाण्ड भी मिले ।
सड़कों-चौराहों के बीच
हुए युद्ध-काण्ड भी मिले,

        कोई ध्वनि-खण्ड पर नहीं
        मिला किसी बातचीत का ।

मन्दिर गोपुर शिखर मिले
देवता सभी मरे मिले
उकरे युगनद्ध युग्म भी
दीवारों पर भरे मिले ।

        सहते आए हैं अब तक
        जो संकट ताप-शीत का ।