Last modified on 28 सितम्बर 2013, at 12:43

उत्तर-कथा (1) / प्रताप सहगल

इरादों की मीनारों पर
टँगे हुए स्वर्ण-कलश
डूबे हैं घने कोहरे की परतों में,
मीनारों की नींवों में
धँसा तीर
उछाल देता है तेज़ जल-धार
रास्ते के बीच ही
टूट-टूट कर लौटती हुई जलधार
समा जाती है
गहरे कहीं ज़मीन के अंदर
न जलाशय बनता है
न स्वर्ण-कलश
ठोस हिम से इरादे
जमे रहते हैं
सतह के सवाल।