ततय पथिक! किछु काल बिलमि वंकिम पथ विन्ध्य अखड
उन्मुख चौदिस परिक्रमण कय चलब उत्तरा खड।।36।।
बिच बिच गुर्जर सिन्धु कच्छ सौवीर पंचनद प्रान्त
राजस्थान प्रभृति जन जनपद पद-पद चलि अभ्रान्त।।37।।
संग्रामी बलिदानी बीरक गढ़-गढ़ीक पढ़ि वृत्त
अपन देश - गौरव गुण-गाथा सुनि मन करब पवित्र।।38।।
गुर्जर महाराष्ट्र सौराष्ट्र विदर्भ आन्ध्र सन्दर्भ
अवधक अवधि वत्स कौशल कनडेरियहु तकइत वर्ग।।39।।
मण्डल - मण्डित देश अखण्ड भरत - खण्डक दिक्पाल
बदरी-केदारक यात्रा अहँ करब पथिक नतभाल।।40।।
पूजि हिमाद्रि अवस्थित वैष्णव, कुंकुम रंजित वेश
गंगा डुब दय, मानस रस लय, प्रविशब नगपति देश।।41।।
पुनि बदरी-केदारक दर्शन जनम न दोसर योनि
उत्तर आश्रम गमन-श्रमक अछि उचित मुक्तिहिक बोनि।।42।।
श्रीबदरी-केदार पुजब हरि हर, पूरब मन काम
ज्योतिर्मय जोशीमठ दर्शन करइत ललित ललाम।।43।।