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उत्रहि राज से एलै एक मोगलवा / अंगिका

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

उत्रहि राज से एलै एक मोगलवा,
बान्हि जे देलकै कमला जी के धार ।
एहेन बान्ह जे बान्हल बोरी रे मोगलवा
सिकियो ने झझावे मोगला के बान्ह ।
हिन्दुओं नै बूझै मोगला, तुर्को नै बुझै
सब से चकरी ढुआवै ।
राजा शिवसिंह बैठल छलै मचोलवा,
तकरो से चेकरी ढुआवे ।
ऐसन बान्ह बान्हलक मोगलवा,
सीकयो ने झझावै मोगलाक बान्ह ।
कानि कानि चिठ्ठी लिखत माता कमला
दहुन गे गंगा बहिनो हाथ ।
गंगा बहिनो चिठ्ठी पढ़ै माटी भीजि गेलै,
हमरो सक नै टूटतै मोगलाक बान्ह
कानि कानि चिठ्ठी लिखै माता कमला
दहुन गे कोसिका बहिनो हाथ ।
कोसिका बहिनो चिठ्ठी पढ़ैत सोचे जे लागलै
हमरो सक नै टूटतै मोगलाक बान्ह ।
एहेन बामी माछ बनबैये बहिनो कमला
फोड़ करै जे मोगलाक बान्ह ।
फोड़ करैत कोसी हुलि देल कै,
केल कै सम्मुख घार ।
गावल सेवक माता दुहु कलजोड़ी
जुग जुग जपब तोहर नाम ।
राजा शिव सिंह चरन नमावे,
मैया हे धनि धनि तोहर प्रभाव ।
तोरा देबौ कमला जोड़ जोड़ पाठी,
कोहला के पाहुल चढ़ाय ।
गावल सेवक माता दुहु कल जोड़ी
युग युग जपब तोहर नाम ।