Last modified on 20 मार्च 2009, at 17:03

उदासी / अनीता वर्मा

तेरी उदासी
तपते हुए दिनों का सामना करती है
ढलती हुई शाम के सूरज तक
पहुँच जाती है
चन्द्रमा उसका पुराना घर है
बिना किसी पहचान के वह घूमती है यहाँ-वहाँ
फूलों, तितलियों और तालाबों के काँपते हुए पानी में
वह सरसराती हुई दिखती है
खुशी से उसका मेल
दो रंगों के सुन्दर मिलन की तरह है
पहले से ज़्यादा एक नया चमकता रंग
उभरता है आत्मा पर
और फिर कुछ न सोचना
न प्रेम के बारे में
न खोई हुई चीज़ों के बारे में
यह सब जीवन का एक नया स्वाद है

मेरी स्मृति पर लगातार परतें चढ़ाती
मेरी शांत उदासी ।