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उदासी / भास्कर चौधुरी

कितनी ऊचाइयाँ
कितनी गहराइयाँ
कितनी दूरी
नापने को है हमारे आसपास
भरने को हैं कितनी दरारें
खालीपन –
फिर भी हम उदास!