Last modified on 11 अगस्त 2020, at 22:28

उदास दुनिया / सुरेश बरनवाल

कल की रात बहुत गीली थी
तुम उदास थीं क्या
चलो सूरज की दीवार पर
कल की रात को कुछ देर बिछा दें
तुम अपनी हथेलियों को खोल लेना
जो धूप तुम्हारे उंगलियों के बीच से छन कर आएगी
हो सकता है वह सुब्हा लाए
जो सोख ले उदासी का गीलापन।
इस रात का
और तमाम उदास रातों का गीलापन सूखना
बहुत ज़रूरी है
मुझे उदास दुनिया अच्छी नहीं लगती दोस्त।