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उधवा / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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धरनी धरम करम कलि कछु ना काम।
मन वच कर्म भजन करु, कर्त्ता राम॥1॥

धरनी धुँआ के धवराहर, धुरि कर धाम।
तैसन जीवन जग मँह, बिनु हरिनाम॥2॥

वन मृत करेर अहेरिया, वड वटवार।
धरनी मन मृग जे वधि, धनि अवतार॥3॥

धरनी जिय जनि मारहु, माँस न खाहु।
नंगे पाँव बबुस्वन, हरि बिरवाहु॥4॥

धरनी मन मृग मैला, गुरु भौ व्याध।
शब्द वान हिय चूभल, दर्शन साधु॥5॥

धरनी से धनि विरहिनि, धारै नधीर।
विह्वल विलखि विकल चित, दुवर शरीर॥6॥

धरनी धीरज न राखै, विनु वनवारि।
रोवति रकतके अंसुअन, पन्थ निहारि॥7॥

धरनि पिया पर्वतपर, चढ़त हेराँव।
कबहुँक पाव डगामग, कँहवा ठाँव॥8॥

धरनी धरकत हिय जनु, करक करेज।
ढरकत भरि 2 लोचन, पिय नहिँ सेज॥9॥

धरनि धवल धवराहर, चढ़ के हेर।
आवत पियहिँ न देखोँ, भैलि अबेर॥10॥

धरनी धिग से जीवन जोइ विहाय।
पर-पुरुषतर आँचर, दिहल डसाय॥11॥

धरनी धनि 2 से दिन, मिलिबै नाह।
संग पौढ़ि सुख बैल सब, शिर धरि बाँह॥12॥

धरनी ध्यान तहाँ धरु, खुलइ केवार।
निरखि 2 परिखत रहु, बार बार॥13॥

धरनी धरि रहु हरि-व्रत, परिहरि मोह।
धन सुत बन्धु विभवजत, अन्त विछोह॥14॥

धरनि धोख जनि लखहु, अपनी ओर।
प्रभुसाँ प्रीति निवाहिये, जीवन थोर॥15॥

धरनी अधर उदय भेला, जोति सरूप।
देखल मनोहर मूरति, रूप अनूप॥16॥

धरनी धर्म करै नहि, डर ना पाप।
सतगुरु जिनहि लखावली, अजपा जाय॥17॥

धरनी फिरहि देशन्तर, धरि के भेस।
कोइ कोइ देखि अभि अन्तर, गुरु उपदेश॥18॥

धनि से गनिका भैलि, रसिया राम।
सहज सुरंग रंग भिजि गैल वनि गैल काम॥19॥

धरनी धनि केर वालमु, वरनि ना जाय।
सनमुख रहत रइनि दिन, मिलत न धाय॥20॥

धरनी जिन पिय पावल, मिटिल द्वन्द।
उधव उरध सर गायउ, हृदय आनन्द॥21॥

धरनी चहुँदिशि चर्चा करिय प्रकार।
नाही हम केहु केरा, केहु न हमार॥22॥

धरनी धाइ चलवु जनि, चिकनी वाट।
खोट राम कवनि सिधि, नागरि हाट॥23॥

धरनी पलक परै नहि, झलक सोहाय।
पुनि 2 पियत प्रेम रस प्यास न जाय॥24॥

धरनी धन तन जीवन, रहउ कि जाव।
हरि के चरण हृदय धरि, हेत चढ़ाव॥25॥

गोरिया करब करहु जनि, गोरे गात।
काल परे झरि जैहेँ, पियरे पात॥26॥

धरनी विलखि विनति करे, सुनहु मुरारि।
सब अपराध क्षमा करु, शरण तोहारि॥27॥

हाथी टेल हठीले, सिपहखलार।
दिन दुइ चारि चहल पहल, पुनि मुख छार॥28॥

धरनी ऐंठल पगरिया, दुइ तरुवारि।
तेहित न पनिया पवारैं, अगिया झाँकारि॥29॥

धरनी धनि 2 से धनि, कुल उँजियार।
जाकर बहियाँ धइल प्रभु, हाथ पसार॥30॥

धरनीश्वर-व्रत चित धरु, धरनीदास।
तासु चरन बलि जावहुँ, प्रेम प्रकाश॥31॥

धरनीश्वर गुन गावल, धरनीदास।
कविर नामदेव जयदेव, तँह देहु वास॥32॥

धरनि अपन मरमवलि, कहिये काहि।
जाननिहार सो जनि है, जस कछु आहि॥33॥

उधव कहहु से सुधवा, तपति बुझाय।
धरनि धनी दर्शन बिनु, अति अकुलाय॥34॥

उधवहिँ देहु दधि दुधवा, कुल हँकवाय।
धरनीश्वरहिँ लियावहु वेगिँहि जाय॥35॥

योवन रतन यतन करि, धरयो जोगाव।
धरनीश्वर यह अवसर, वेलसंह आय॥36॥

हिन्दु तुरुकजनि छोड़हु, धरम इमान।
धरनीदास पुकारै, मौत निदान॥37॥

धरनी अतिथि कहायउ, धन व्यवहार।
सहजै सुपथ विसरिगैल, परि वनझार॥38॥

परमारथ पथ चढ़िके, कम्र किसान।
जनु घर छोड़वा अछइत, गहदा पलान॥39॥

काहुके बहुत विभव-बल, कुल परिवार।
धरनी कहत हमहि बल, राम तोहार॥40॥

सबुजा सोहत शिरपर, दुइ शम्शेर।
तेहि तन ऊपर देखल, मटियाके ढेर॥41॥