उनका सपना शब्द से पहचान सुन्दर चाहिए
मेरा सपना है कि हिन्दोस्तान सुन्दर चाहिए
ज़िंदगी से छलछलाते शब्द ही मेरे यक़ीन
उनको कविताओं क़ब्रिस्तान सुन्दर चाहिए
फिर कहीं दहशत न होगी फिर न होंगी आफ़तें
आदमी की भीड़ में इंसान सुन्दर चाहिए
क्यों न बन जाएगा सोने का परिंदा मुल्क फिर
सारे फ़िरक़ों में ज़रा ईमान सुन्दर चाहिए
खिलखिलाएँगे नए ताज़ा महकते फूल भी
इस पुराने बाग़ में तूफ़ान सुन्दर चाहिए
चल नहीं सकती अगर दुनिया ख़ुदाओं के बिना
दोस्तो फिर तो नया भगवान सुन्दर चाहिए
ऊब गए हैं लोग पढ़-पढ़ कर असुन्दर संग्रह
‘नूर’ दुनिया को तेरा दीवान सुन्दर चाहिए