भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनकी पीड़ा / श्यामलाल शमी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:07, 4 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्यामलाल शमी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो, हाँ भाई सुनो
किसुना अछूत
कुछ पढ़-लिखकर कृष्ण
और फिर
आज़ादी की लड़ाई के दिनों में
कृष्णचन्द्र दास कहलाया
और हमारी
मजूरी-चाकरी छोड़कर
ईंट के भट्ठों का
ठेकेदार हो गया
और सुराज के कारण
देखते-ही-देखते
एक दिन ग्रामसभा का मेम्बर
और फिर प्रधान बन बैठा
और तो और
उसी किसुना अछूत का बेटा
जिसे हम सदा कलुआ कहते रहे
स्कूल में दाख़िल हो गया
स्कूल में कलुआ से
कालीचरण दास कहलाया
और फिर कालेज की बड़ी डिग्री लेकर
सरकारी सुविधाओं के तहत
अफ़सर बन गया
जिस कलुआ का बाप किसुना
कभी हमसे नौकरी-चाकरी माँगता था
उसी का बेटा कलुआ
यानी अब कालीचरण दास
सरकारी अफ़सर बन
कुर्सी पर साधिकार बैठकर
हमारे बेटों से
नौकरी के लिए आवेदन-पत्र लेता है
और गुण-अवगुण के आधार पर
नौकरी देता है
भाई मेरे, इस सुराज की
आज़ादी ने तो बिलकुल
उल्टा ही खेल जमाया है
पता नहीं क्या होगा इस देश का
कैसा नया ज़माना आया है!