भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उन्हें बस पीसना है बाजरे मक्के से क्या लेना / ओम प्रकाश नदीम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 6 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रकाश नदीम |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उन्हें बस पीसना है बाजरे मक्के से क्या लेना
हवस का पेट भरना है किसी आटे से क्या लेना
हमारी क़द्र का इण्डेक्स गिरने पर है आमादा
हमें सेंसेक्स के आकाश छू लेने से क्या लेना
अक़ीदा तो अक़ीदा है चढ़ावा तो चढ़ावा है
जो आता है वो आने दो, खरे खोटे से क्या लेना
पुराने ज़ख़्म पर लिक्खी इबारत ठीक से पढ़ लें
सिवा इसके हमें इतिहास के चश्मे से क्या लेना
अभी तो एक ही दूकान के लायक़ नहीं हैं हम
हमें दस मंज़िला बाज़ार खुल जाने से क्या लेना