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उन औरतों का गीत / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

{'लेडी डफ़रिन' ने भारतीय औरतों, जो पुरुष डॉक्टरों को नहीं दिखा सकती थीं, उनकी ख़ातिर महिला चिकित्सकीय कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए 'नेशनल असोसिएशन फ़ॉर सप्लाइंग फ़ीमेल मेडिकल ऐड टू द वीमेन ऑफ़ इंडिया' संस्था का गठन किया। उन्होंने भारतीय औरतों और प्रसूताओं के इलाज में सुधार के लिए बहुत काम किया। इस कविता में भारतीय औरतें उन्हें कृतज्ञता प्रकट करने की कोशिश कर रही हैं, और यह काम वे हवाओं को सौंपती हैं}


कैसे ज्ञात होगी उसे यह श्रद्धा जो हम उसे अर्पित करेंगे?
बहुत ऊंची हैं ये दीवारें, और है वो बहुत दूर.
कैसे पहुँचेगा इस औरत का संदेश उस तक
इस भरे बाज़ार के कोलाहल से होकर?
इस झरोखे से बहने वाली मार्च की स्वच्छंद हवा तुम
पहुँचा दो हमारी कृतज्ञता, इससे पहले कि वो अनभिज्ञ विदा हो जाए.

बढ़ो जाओ उन खेतों के पार जिनमें हम नहीं घूम सकते,
बढ़ो जाओ उन पेड़ों के पार जो घेरे हुए हैं यह शहर,
वहाँ को– चाहे जिस भी सुंदर जगह पर हो उसका घर,
जिसने हमें उपहार दिया यह प्यार और दया का.
गुज़रो हमारी छाया से दूर, और उसके पास पहुँचो गाते हुए―
"नहीं है मेरे पास लाने के लिए कोई उपहार, बस है प्यार."

कहना कि हम लोग जो करते हैं उसका सत्कार भले हों कमज़ोर
पर आदिम हैं दुख में, और बहुत अनुभवी हैं आँसुओं में;
कहना कि हम, जो एकाकी हैं, विनती करते हैं उससे
कि आने वाले सालों में वो भूल ना जाए हमें;
कि हमने देखा है उजाला, और बहुत कष्टकर होगी
वह धुँधला गयी भोर अगर छोड़ देती है हमें हमारी प्यारी.

जीवन जो बहता रहा जब रक्तस्राव रोकने को कुछ नहीं था, उससे
प्यार जिसका बसंत में किया गया करुण संग्रह, उससे
जब प्यार अज्ञानता में रोया करता व्यर्थ
जवान कलियों पर जो खिलने से पहले मर गयीं;
सभी भूरे उलूक जिन्होंने देखा, वह पीला चंद्रमा जो साक्षी रहा,
बीते मनहूस वर्षों में, उन सभी की जानिब से
प्रकट करना हमारी कृतज्ञता!

वे हाथ जिन्हें उठाया गया उन ईश्वरों तक जिन्होंने नहीं सुना, उनसे
बीमारियों के दौरे जिन्होंने नहीं पाई कृपा की एक नज़र, उनसे
वे चेहरे जो झुके रहे अपने बच्चे पर जिसमें नहीं थी हलचल, उनसे
उन दमघोंटू रातों की सभी अनाम विभीषिकायें, उनसे
बीमारियां जो मिटाई गयीं, शांति जो उसकी मेहनतों ने प्रकट किया, उनसे
उन सभी की जानिब से,
दुआ देना कि मिले उसे सुखद पृथ्वी अधः और ऊपर आकाश!

अगर उसने अपने सेवकों को भेजा है हमारे दुख-दर्द में
अगर उसने मौत से जंग की है और घिसट ली है अपनी तलवार;
अगर उसने वापस दे दिए है हमें हमारे बीमार लोग.
और छातियों पर लौटने लगे हैं कमज़ोर होते जा रहे होंठ,
क्या ये छोटी चीज़ है जो उसने किया है?
तब तो जीवन और मृत्यु और मातृत्व सब हों बिल्कुल शून्य.

बढ़ो जाओ, ओ हवा, हमारा संदेश लिए अपने पंखों पर,
और वे सुनेंगे तुम्हें गुज़रते हुए और बख्शेंगे तुम्हें गति,
सरकंडों की छतों वाली झोपड़ी वाले, या राजाओं के सफ़ेद दीवार वाले घरों वाले,
जिन्हें सहारे मिले हैं उसके उनकी ज़रूरतों में.
सारे बसंत तुम्हें बख्शेंगे सुगंध, और वो गेहूँ
गुच्छेदार गलीचा होगा तुम्हारे पावों के लिए.

ज़ल्दी करो, कि हमारी धड़कनें हैं तुम्हारे साथ, कोई आराम न करो!
ओ उच्च-स्वर-धारी दूत, समंदर से समंदर तक
प्रकाशित कर दो वह कृपालुता, जो बहुविध हुई, एहसानमंद हैं जिसके,
वे अंधेरे में रहने वाले जिन्हें उसके हाथों ने मुक्त किया.
फिर बहुत प्यार से उसके पास जाना,
और फुसफुसाना, "प्यारी, देखो, वे जानते हैं और स्नहे करते हैं!"