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उन के जिने ज़ुल्म थे सब उन के मुँह पर कह दिया / सफ़ी औरंगाबादी

उन के जिने ज़ुल्म थे सब उन के मुँह पर कह दिया
जो कहा था हम ने औरों से बराबर कह दिया

हज़रात-ए-दिल तुम ने उस को दोस्त जाना किस तरह
क्या फरिश्तों ने तुम्हें चुपके से आ कर कह दिया

दोस्त उन के बे-वफ़ा कि वास्ते होने चले
उन को कहना था मुझे औरों पे रख कर कह दिया

हर किसी से मेल-जोल अब आप का है इख़्तियार
जो मुझे कहना था वो ऐ बंदा-परवर कह दिया

शेर सुन सुन कर ‘सफ़ी’ के आप क्यूँ बरहम हुए
वो तो ऐसा है की जो आया ज़ुबाँ पर कह दिया