भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उन से उम्मीद-ए-रूनुमाई है / शकील बँदायूनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उन से उम्मीद-ए-रूनुमाई है
क्या निगाहों की मौत आई है

दिल ने ग़म से शिकस्त खाई है
उम्र-ए-रफ़्ता तेरी दुहाई है

दिल की बर्बादियों पे नाज़ाँ हूँ
फ़तह पाकर शिकस्त खाई है

मेरे माअबद् नहीं है दैर-ओ-हरम
एहतियातन जबीं झुकाई है

वो हवा दे रहे हैं दामन की
हाये किस वक़्त नींद आई है

खुल गया उन की आरज़ू में ये राज़
ज़ीस्त अपनी नहीं पराई है

दूर हो ग़ुन्चे मेरी नज़र से
तू ने मेरी हँसी चुराई है

गुल फ़सुर्दा चमन् उदास 'शकील'
यूँ भी अक्सर बहार आई है