भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उपमेय / सुरेन्द्र डी सोनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कालिदास से लेकर अब तक
चाँद से इतनी बार ढका है
तुमने मेरा चेहरा
कि मैं ग्रहण की शिकार धरती-सी
जान ही न पाई अपना चेहरा...

उपमाएँ कितनी बेरहमी से
ख़त्म कर देती हैं उपमेय का सौन्दर्य..!