उफुक के आखिरी मंज़र में जगमगाऊँ मैं
हिसार-ए-जात से निकलूँ तो खुद को पाऊँ मैं
ज़मीर ओ जे़हन में इक सर्द जंग जारी है
किसे शिकस्त दूँ और किस पे फतह पाऊँ मैं
तसव्वुरात के आँगन में चाँद उतरा है
रविश रविश तेरी चाहत से जगमगाऊँ मैं
ज़मीन की फिक्र में सदियाँ गुजर गई ‘अजमल’
कहाँ से कोई ख़बर आसमाँ की लाऊँ मैं