भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उबडूब प्राण / मनीष कुमार गुंज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आबी गेलै परीक्षा बाबू, उबडूब हमरोॅ प्राण हो
चिðा दै के किरिया खैभोॅ, तभिये बचतै जान हो

साल भरी स्कूल से भागी,
किसिम-किसिम सिनेमा देखलौं
मैया के अचरा के पैसा
पानी नाँकी खूब दहैलोॅ
मोबाइल जिनगी के मेला
सन-सन लागै कान हो,
आबी गेलै परीक्षा बाबू, उबडूब हमरोॅ प्राण हो

बाबू कहै कि डाक्टर बनतै, मैयो कहै दरोगा,
हम्में बीच भँवर में फसलौं
अनटेटलों सन दोगा
हे भगवान तोरा पे असरा
हमरो बेड़ा पार लगाबोॅ
जे कोश्चन के उत्तर नै छै
ओकरा खतिर तार लगाबोॅ
लाउडस्पीकर से प्रभु जी
गैभौन तोर गंुणगान हो
आबी गेलै परीक्षा बाबू, उबडूब हमरोॅ प्राण हो