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उबरणौ / चंद्रप्रकाश देवल

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उण कह्यौ - ‘डूब’
पूछतौ कठै, तौ तोहीन व्हैती
पण डूबूं तो कठै?

औ ‘कठै’ कैवणौ अणूंतौ कावळ व्है
अेक बोबाड़िया सारू ई
अर ‘कटकारौ’ सुगनिया सारू माड़ौ व्है

उण सोच्यौ -
‘औ कुतरकियौ डूबण सूं नटतौ
कठैई नट नीं जावै
संसार रा सबसूं पवीत सबद रा अरथ नै’

औ हास-हतआस नै उडीकण रौ सवाल नीं
औ निकेवळी प्रीत रै अरथ रौ सवाल हौ

उण दूजी वळा खरायौ
अर म्हैं डूबग्यौ...