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उभयचर-7 / गीत चतुर्वेदी

एक ही अर्थ है भय और इच्छा का
समय आने पर दोनों दग़ाबाज़ हो जाते हैं
बीस अक्षर तक ख़र्च नहीं हुए बीस सदियां बीतने में
यहां किसी ज्ञान को प्रवेश की अनुमति नहीं गूगल के ज्ञान को चुनौती की गुंजाइश नहीं
शब्दों पर उंगली रखें उनका उभार महसूस करने के लिए नहीं उनके अर्थ को देने दिशा
शरारती शब्दकोश हैं जो यह भाषा अपने पैरों पर नहीं चलती कितौ उनकी शरारत है जो हमेशा दूसरे के पैरों पर चलते
ओ मेरी भाषा, तू गए-गुज़रों की, घृणित तबक़ों की, लुच्चे-लंपटों की है
और वे अपनी किसी चीज़ से प्यार नहीं करते
वे भी नहीं जिन्हें नमक का निबंध कहता आया मैं अमूर्तन के अपने अनगिन क्षणों में असहाय बोली-बानी में
मिले को तजने और न मिले को भोगने की इच्छाओं से मजबूर मानता हुआ