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उमर भर के लिए / संतोष श्रीवास्तव

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बस एक शाम ऐसी हो
जो तेरे साथ गुजरे
कि जा बैठे हम
नदी के किनारे
चांदनी भर ले हमें
आगोश में
सर्द पानी की धाराएं
जिस्म को आकर छू लें
हवा संग
तेरी सांसों की खुशबू
समा जाए रूह तलक
मेरे जज्बात ,खयालात
यूँ हो जाए रवाँ
और मैं ठिठक जाऊं
बस उस शाम
उम्र भर के लिए
काश ऐसा हो