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उम्मीदों की एक नदी आँखों में रेगिस्तान हुई / राम नारायण मीणा "हलधर"

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उम्मीदों की एक नदी आँखों में रेगिस्तान हुई
चमकीली सड़कों से मिलकर पगडंडी सुनसान हुई

मुस्कानों का क़र्ज़ लिए हम चहरा जोड़े बैठे हैं
अंदर अंदर सब कुछ टूटा ये बस्ती वीरान हुई

चंदा जैसी हंसमुख लड़की जब देखो घर आती थी
माथे पर सूरज चमका है, उस दिन से अनजान हुई

सड़कें चौराहे तो हमको, सर आँखों पे रखते हैं
घर का कोना कोना रूठा परछाई अपमान हुई

उनकी हाँ में हाँ कहते हैं सब कुछ अच्छा अच्छा है
जब भी हमने सच बोला तो फिर आफ़त में जान हुई

जब सूरज ने बेमन से ये पूछा कौन कहाँ के हो
इक जुगनू को अपने कद की तब जाकर पहचान हुई
 
मिट्टी का अपने ख्वाबों से जन्मों से नाता 'हलधर'
ग़र मिट्टी के भाव बिके तो दुनिया क्यूँ हैरान हुई