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"उम्र गुज़रेगी इंतहान में क्या / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर
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− | उम्र गुज़रेगी | + | उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या? |
दाग ही देंगे मुझको दान में क्या? | दाग ही देंगे मुझको दान में क्या? | ||
मेरी हर बात बेअसर ही रही | मेरी हर बात बेअसर ही रही | ||
− | + | नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या? | |
− | + | ||
बोलते क्यो नहीं मेरे अपने | बोलते क्यो नहीं मेरे अपने | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 15: | ||
मुझको तो कोई टोकता भी नहीं | मुझको तो कोई टोकता भी नहीं | ||
− | यही होता खानदान मे क्या? | + | यही होता है खानदान मे क्या? |
अपनी महरूमिया छुपाते है | अपनी महरूमिया छुपाते है | ||
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वो मिले तो ये पूछना है मुझे | वो मिले तो ये पूछना है मुझे | ||
अब भी हूँ मै तेरी अमान में क्या? | अब भी हूँ मै तेरी अमान में क्या? | ||
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यूँ जो तकता है आसमान को तू | यूँ जो तकता है आसमान को तू | ||
कोई रहता है आसमान में क्या? | कोई रहता है आसमान में क्या? | ||
− | है नसीम-ए-बहार | + | है नसीम-ए-बहार गर्दालूद |
− | + | ||
खाक उड़ती है उस मकान में क्या | खाक उड़ती है उस मकान में क्या | ||
ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता | ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता | ||
− | एक ही | + | एक ही शख्स था जहान में क्या? |
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10:30, 14 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
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उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या?
दाग ही देंगे मुझको दान में क्या?
मेरी हर बात बेअसर ही रही
नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या?
बोलते क्यो नहीं मेरे अपने
आबले पड़ गये ज़बान में क्या?
मुझको तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान मे क्या?
अपनी महरूमिया छुपाते है
हम गरीबो की आन-बान में क्या?
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मै तेरी अमान में क्या?
यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या?
है नसीम-ए-बहार गर्दालूद
खाक उड़ती है उस मकान में क्या
ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहान में क्या?