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उरइँयाँ / गुणसागर 'सत्यार्थी'

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साँकर बजी दुआरें देखौ टेरन लगीं उरइँयाँ;
गई अँदेरी रैन सगुन-सीं बोलन लगीं चिरइँयाँ।

कुकरा की सुन बाँग उल्लुअन की धक-धक भई छाती,
अँखियाँ हो गई चार चकई कीं पिया संग इठलाती।
धुँधरी हो गई जोत दिया में तेल बचौ न बाती;
गलियारिन में गूँज रई अब साँईं की परभाती।

छिन में चोर सरीखीं दुक गई अनगिन सरग तरइँयाँ।
गई अँदेरी रैन सगुन-सीं बोलन लगीं चिरइँयाँ।

घर के जेठे जगे, पौंर में खाँसें और खकारें;
ओझा बब्बा महामाई के पौवे सपर दुआरें।
पीपर तरें मनौती करकें बाई सिव खों ढारें;-
चरनन ध्याँन लगा हियरा में आस-चन्दन गारें।

मन्दिर के घंटा घाराने, कड़ीं बगर सें गइँयाँ;
गई अँदेरी रैन सगुन-सीं बोलन लगीं चिरइँयाँ।

हँसी पुरैन तला के बीचाँ, रै पानी सें न्यारी,
महकन लगी मदरसा-क्यारी कौंरे फूलनवारी।
कीनें सोंन-बारिया लैकें बखरी झार समारी?-
राई-सी नच उठी किरन जाँ सतरंगी फगवारी।

राम-राम की रटन लगा रई पिंजरा भीतर टुइँयाँ।
गई अँदेरी रैन सगुन-सीं बोलन लगीं चिरइँयाँ।

डार उरैंन सगुन सें पूरे सुबरन चौक सलोंने;
स्यानी बिटिया की ओली फिर भरी काऊ नें नोंने।
बखरी हो गई अमर सुहागिन हरसे चारउ कोंने,-
हाल-फूल में सबई तराँ के राग-रंग अब होंनें।

उठ डारें बल्दाऊ नोंनें खेतन सगुन हरइँयाँ;
गई अँदेरी रैन सगुन-सीं बोलन लगीं चिरइँयाँ।