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उर्वशी, रम्भा, मेनका / मुन्ना पाण्डेय 'बनारसी'

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उर्वशि, रम्भा, मेनका, कभी न होती बूढ ।
यह रहस्य जानें नहीं, ज्ञानी और विमूढ़।
ज्ञानी और विमूढ़ , कौन सा क्रीम लगाती।
च्यवनप्राश या भस्म, न जाने क्या क्या खाती।
कह मुन्ना कविराय, बात यह लगे अचम्भा।
पुरुषों से यह राज, न कहती उर्वशि, रम्भा।।