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उर में छाले / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1
सारी ही उम्र
बीती समझाने में
थक गए उपाय,
जो था पास में
वो सब रीत गया
यूँ वक्त बीत गया।
2
ज़हर-बुझे
बाण जब बरसे
भीष्म-मन आहत,
जीना मुश्किल
उत्तरायण बीता
मरने को तरसे।
3
जीवन तप
चुपचाप सहना
कुछ नहीं कहना,
पाई सुगन्ध
जब गुलाब जैसी
काँटों में ही रहना।
4
उर में छाले
मुस्कानों पर लगे
हर युग में ताले,
पोंछे न कोई
आँसू जब बहते
रिश्तों के बीहड़ में।
5
मन विकल
नयन छलछल
बहते हैं विकल,
कहते कथा
साँझ से भोर तक,
जाग सुनती व्यथा ।