उलझनों से तो कभी प्यार से कट जाती है
ज़िंदगी वक़्त की रफ़्तार से कट जाती है
मैं तो क्या हूँ मेरी परछाई भी
रोज़ उठती हुई दीवार से कट जाती है
यूँ तो मुश्किल है बहुत इसको मिटाना साहब
दुश्मनी प्यार की तलवार से कट जाती है
सारी बेकार की खबरें ही छपा करती हैं
काम की बात तो अख़बार से कट जाती है
इतना आसान नहीं प्यारे मुहब्बत करना
ये वो गुड़िया है जो बाज़ार से कट जाती है