Last modified on 15 दिसम्बर 2019, at 22:16

उल्फ़त है तो डर कैसा, रुसवाई क्या / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’

उल्फ़त है तो डर कैसा, रुसवाई क्या
दिल के आगे दरिया की गहराई क्या

तुमने तो वादों की मिट्टी भरवा दी
पट जायेगी इससे गहरी खाई क्या

बचकर रहना यार, सियासी लोगों से
इनके दिल में ईमां क्या, सच्चाई क्या

खुद को खुद में ढूँढो तो, मिल जाओगे
इस मंज़र को आँखें क्या, बीनाई क्या

क़द से लम्बे हो जाते हैं साये भी
शाम ढ़ले किरदारों की चतुराई क्या

किस मंज़र में खोकर, बेसुध है भँवरा
गुल ने टहनी पर ली है अँगड़ाई क्या