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"उल्लास भरे क्षण / कैलाश पण्डा" के अवतरणों में अंतर

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बीज है मौन, वृक्ष बनने तक
विकास की यात्राएं
तय हो चुकी
मिट्टी के सान्निध्य को पाकर
उसके ससंर्ग से
प्रस्फुटित होगा ही
स्पंदन की सारी क्रियायें
गति देती है
उल्लास भरे क्षण कण-कण
बीज है मौन वृक्ष बनने तक।
निर्जन वन में भी
सृजन की क्षमता
भूल नहीं, तप है उसका
उत्थान के क्रम में
पा लेगा थाह
जीर्ण नहीं उसकी क्षुधा
उल्लास भरे क्षण कण-कण
बीज है मौन वृक्ष बनने तक।
कल्पना के प्रवाह में
खिलने की चाह में
प्रगति के पथ पर
मिटना चाहता है
मिट्टी की गोद में रहकर
जागना चाहता है
उल्लास भरे क्षण कण-कण
बीज है मौन वृक्ष बनने तक।
सुगम नहीं पथरीले पथ हैं
कोमल स्वयं किन्तु गदगद् हैं
ठांव ले छांव ले पथिक
ऐसा मन है
पुष्पित तन हो तो सुगन्धित बयार
ऐसा मत है
उल्लास भरे क्षण हर कण
बीज है मौन वृक्ष बनने तक।
रत्र जड़ित सी लथपथ डाली
जो देगी पशुआें को चारा
फल परिपक्‍व सोने सा
मानव को देगा मुदुता
हाथ फैलाये सा अडिग दिखेगा
मानो कहता हो प्रभु दो
जग सारा मेरा
उल्लास भरे क्षण कण-कण
किन्तु अभी है मौन वृक्ष बनने तक।
काट न दे छांग न ले कोई
अश्रुकण भी छुपाया होगा क्या यही सोचकर ?
आशाओं का ज्वार रूकता कहां है ?
मानो कहता हो वह
मर मिटूंगा स्वधर्म में
जीवित रहा तो आश्रय दूंगा
धूप छांव वर्षा तूफान में
खिलता रहूंगा
विकट वीरान में
उल्लास भरे क्षण कण-कण
बीज है मौन वृक्ष बनने तक।