भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसका जीवन / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचपन से ही मां-बाप कहते थे
बेटी को पढ़ाऊंगा
एक अच्छे घर में शादी होगी
और ऐसा ही हुआ
आनर्स में उसे फ़र्स्ट डिवीज़न मिला था
फिर शादी हो गई
ससुराल में उलाहने
लगभग नहीं के बराबर मिले
पति के साथ
छुट्टी पर जाने का मौका मिला
एकबार जयपुर
एकबार तो दस दिनों के लिये साउथ की टूर
दो बच्चे हुए
नौकरी का इरादा छोड़कर
घर संभालना पड़ा
पति साहब हो गए
एकबार सेक्रेट्री से इश्क का लफ़ड़ा चला था
जल्द ही ठीक हो गया
बेटे को मैनेजमेंट में डिग्री के बाद
अच्छी नौकरी मिल गई
बेटी की भी शादी हो गई
जीवन भरा-पूरा था
शाम को वह सीरियल देखती थी
अचानक एक छोटी सी बीमारी के बाद
वह चल बसी

अब वह लेटी हुई थी
पड़ोस की औरतें कह रही थीं
भागवंती है
सुहाग लेकर चली गई