Last modified on 29 जनवरी 2009, at 22:01

उसका दु:ख / सरोज परमार



बच्चे की जलती बुझती आँखों में
नहीं हैं सपने
देर से लौटती थकी-माँदी
माँ का इन्तज़ार है.
उसे पूछने हैं कई सवाल
कहनी हैं कई छिटपुट बातें.
वो भी जानने लगा है
आँखें चुराकर घुस जाएगी चौके में माँ
वह निहारता रहेगा उसकी बाट
तब तक जब तक
आँखें भारी न हो जाएँ.
बच्चा नहीं कह पाता वो सब
जो सिर्फ़ उसे माँ से कहना है.
माँ समझती है दु:ख उसका
पर उसका दु:ख महीने के राशन
से उसे हल्का लगता है.