भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसका नीला जिस्म रोशनी में नहाया हुआ / वार्सन शियर / राजेश चन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या तुम यक़ीन करोगी कि मुझे कैंसर है?
पूछती है योसरा,
चाय की एक प्याली उसके हाथों के बीच,
क़रीब-क़रीब हँसती हुई,
बाल करीने से कटे हुए खोपड़ी के पास से।
मैं कल्पना करती हूँ कैंसर के परीक्षण की
उसके जिस्म के भीतर,
नन्हें पारदर्शी कण रोशनी के,
बिनाई करते अन्दर-बाहर
उसके पेट और गर्भाशय की,
गुज़रती हुई बाहर-भीतर उसके गले के
रोशनी की सुइयाँ,
आतिशबाज़ियाँ चमचमातीं,
जिस्म जैसे जलता हुआ अपने ही भीतर,
गहरे समन्दर की नीलिमा
उसके जिस्म की तहों में,
उसकी पसलियाँ एक मछलीघर-सी,
कैंसर फैलता हुआ, पसरता हुआ
तल की सुदूर गहराई में,
उसका कण्ठ लावा की एक लालटेन,
चिनगियाँ, नीचे उरोस्थि के —
रोशनी का एक भरा-पूरा तमाशा,
असँख्य छोटे-छोटे जेलीफिश,
बैण्डदल-युक्त गर्भ,
सतरंगे अण्डाशय, डिस्को नृत्य करता दिल,
उसकी त्वचा की चमक
और-और तेज़ होती हुई,
रोशनी फूटती हुई भीतर कहीं गहराई से।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र