भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसकी कहानी / मनोज श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Dr. Manoj Srivastav (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 16 सितम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


उसकी कहानी

यहीं से
हां, यहीं से
शुरू होती है
--उसकी कहानी,
इसमें घर है,
परिवार है,
पड़ोस है,
समाज और देश भी है
 
अगर देश से शुरू होती है
यह कहानी
तो वह इसका एक नितांत उपेक्षित पात्र है
नहीं, नहीं कुपात्र है,
ऐसा कुपात्र है
जो सच बोलकर
गर्वीले झूठ के सामने
अपराध-बोध से
धंसता चला जाता है--
तलहीन रसातल में
 
आओ!
मैं परिवार और समाज में अनफिट
उसके सहोदारों की चर्चा छेड़ता हूं,
जिनके पले-पुसे सपने
रेत की तरह भुरभुरे होते जाते हैं
जो उनके नींद तक में अट नहीं पाते
और झर-झर फिसलकर
उनके पैरों को लहूलुहान कर देते हैं
उन्हें लुंज पोलियोग्रस्त कर देते हैं
 
उनके पास मरने के लाखों बहाने हैं
पर, सांसों की दुधारी तलवार
उन बहानों का गला घोंट देती है
इसलिए, समय से संग्राम कर रहे
उन कुपात्रों से
कहता हूं मैं
कि अब वे समय पर
घुड़सवारी करने का मनोबल तोड़ दें
 
सुनो!
इस महानगरीय कहानी में
उसकी ब्याहता बहन भी है
और वह गलती से
उस आदमी की पत्नी है
जो मंगल के व्रत के दिन
अपनी रखैल संग रात गुजारता है,
फिर, सुबह धारदार किरणों के साथ लौट
उस पर दुतकारों की गोलियां दागता है

पर, वह मिसालिया हिन्दुस्तानी औरत है
--पागलपन की हद तक पतिव्रता और निष्ठावान,
जो सस्ते किराए की छत पर
निष्ठुर मौसम की डांट-डपट सुनती हुई
निचाट रात होने तक
अपने वहशी पति की
बाट जोहती है

बेशक! वह उनमें से एक है
जिसे दुष्ट देव ने
उसे हताशा की हुक पर
हलाल बकरे की तरह लटका दिया है.