भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसकी चुप्पी / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 30 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसकी चुप्पी-
मेरे भीतर
उतर आई हो कहीं जैसे;
करने को आतुर हों
अनन्त यात्रा मेरी आत्मा तक
उसकी आँखें यों देख रही हैं एकटक मुझे
भीतर से भीतर तक,
'अभी तो स्पर्श भी न किया
फिर ये कैसा जादू है।