उसकी चुप्पी-
मेरे भीतर
उतर आई हो कहीं जैसे;
करने को आतुर हों
अनन्त यात्रा मेरी आत्मा तक
उसकी आँखें यों देख रही हैं एकटक मुझे
भीतर से भीतर तक,
'अभी तो स्पर्श भी न किया
फिर ये कैसा जादू है।
उसकी चुप्पी-
मेरे भीतर
उतर आई हो कहीं जैसे;
करने को आतुर हों
अनन्त यात्रा मेरी आत्मा तक
उसकी आँखें यों देख रही हैं एकटक मुझे
भीतर से भीतर तक,
'अभी तो स्पर्श भी न किया
फिर ये कैसा जादू है।