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उसकी जिन्दगी में लोकतंत्र / कौशल किशोर

उसने जो किया, भरपूर किया
प्यार किया, वह भी दिल लगाकर किया

यह ज़रूरत से कहीं ज्यादा
उसकी सामाजिक बाध्यता थी
या
नैतिकता, मर्यादा, लोक संस्कार के
रटाये गये पाठ थे
जो उसके साथ गठरी की तरह बंधे थे

मैके पीहर नइहर
बहुत पीछे छूट गया था उसका घर
जीवन का ककहरा सीखा था जहाँ
बनी थीं बहुत-सी सखियाँ-सहेलियाँ
दोस्त भी बहुत से
कई कई सम्बन्धों को जीते हुए
वह बड़ी हुई थी
दूर दूर तक फैली थी
उसकी नन्हीं-नन्हीं जड़ें

यहीं से उखाड़ी गई
अपनी जड़ों के साथ
अपरिचित से घर के आँगन में रोपी गई
अब उसे पेड़ बनना था
भरपूर फल और फूल देना था
शीतल छाया भी
हमेशा झुके रहना था

बच्चे हुए
और समय के साथ
वे बड़े हुए

वक्त गुजरा
उसका ओहदा भी बढता गया
पहले वह बहू थी
सास हुई

बच्चों ने मेडल जीते
घर की सारी आल्मारियाँ भर गई
ट्राफियों से
जग में खूब नाम कमाये
पर वह भी बेनाम कहाँ रही?

फल फूल न दे पाई
तो एक नया नाम मिल गया उसे
अपना वजूद तलाशती
वह तन कर खड़ी हुई तो दूसरा
उड़ने की चाह लिए घर से बाहर निकली
तो कुछ और

ऐसे ही कई-कई नाम उपनाम के साथ
वह जीती रही
जैसे, ऐसे ही उसे जीना था
इस लोकतंत्र में

यहाँ उसके पास सब कुछ था
पर उसकी ज़िन्दगी में लोकतंत्र नहीं था।