Last modified on 26 मई 2011, at 03:34

उसकी दुनिया / हरीश करमचंदाणी

उसकी दुनिया दूसरी थी
औरो से अलग
उसमे सपने थे
खूशबू थी
हँसी थी
सफ़ेद कबूतर थे
और भोले खरगोश भी