भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसकी यादों ने मेहरबानी की / श्याम कश्यप बेचैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम कश्यप बेचैन }} {{KKCatGhazal}} <poem> उसकी यादों ने मे…)
उसकी यादों ने मेहरबानी की
मेरे ज़ख़्मों से छेड़खानी की
शेर मैंने नहीं कहे साहब
अपनी आहों की तर्जुमानी की
दरअसल थी वो एक चिंगारी
जिसको समझे थे बूँद पानी की
बन के ईमानदार सबके लिए
मैंने अपने से बेईमानी की
है जवानी पे आग का दरिया
उम्र घटने लगी है पानी की
हुक़्मरानों का हुक़्मरान है वह
जिसने अपने पे हुक़्मरानी की