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उसकी यादों ने मेहरबानी की / श्याम कश्यप बेचैन

उसकी यादों ने मेहरबानी की
मेरे ज़ख़्मों से छेड़खानी की

शेर मैंने नहीं कहे साहब
अपनी आहों की तर्जुमानी की

दरअसल थी वो एक चिंगारी
जिसको समझे थे बूँद पानी की

बन के ईमानदार सबके लिए
मैंने अपने से बेईमानी की

है जवानी पे आग का दरिया
उम्र घटने लगी है पानी की

हुक़्मरानों का हुक़्मरान है वह
जिसने अपने पे हुक़्मरानी की