भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसके मोह ने / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 25 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरी सरलता ने मुझे अँधेरों में रखा,
वरना, कोई कमी न थी मुझे उजालों की।
उसके मोह ने इस शहर के फेरों में रखा,
हवा न लगी मुझे मशहूर होने के ख्यालों की।
झिर्रियों की रोशनी को बाँह के डेरों में रखा,
जिससे घबराई वो परछाईं थी मेरे ही बालों की।
उसने हमराज़-हमदर्द शब्दों के ढेरों में रखा,
नैनों की भाषा हारी, लिपि भावों के उबालों की।
चाँद ने उस रात प्यार के घेरों में रखा,
सूरज ने हमेशा गवाही दी मेरे पैरों के छालों की।
दूर के पर्वत की चोटी को मैंने पैरों में रखा,
जानकर कविता अनदेखी करती रही चालों की