उससे मिल आए हो लगा कुछ-कुछ
आज ख़ुद से हो तुम जुदा कुछ-कुछ
दिल किसी का दुखा दिया मैंने
ज़िंदगी मुझसे है ख़फा कुछ-कुछ
मेरी फ़ितरत में सच रहा शामिल
अपना दुश्मन ही मैं रहा कुछ-कुछ
आग पीकर भी रौशनी देना
माँ के जैसा है ये दिया कुछ-कुछ
उलझे धागों से हमने समझा है
ज़िंदगानी का फ़लस़फा कुछ-कुछ