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उस आलीशान घर में / शर्मिष्ठा पाण्डेय

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उस आलिशान घर में ढेरों सजे थे
कीमती सामान
आसाइशें
रोने को भी खाली न थे कोने
उन कोनों पर भी पहले से ही थी नमी
सीलन वाली देह की मिट्टी का भुरभुरापन
सनता रहा अपने ही आंसुओं के गीलेपन से
ज़बरन दबाई गयी भावनाओं को ये कब्र ही मुनासिब पायी
फूल ज़रूरी नहीं इन पर
बताया तो था
ढेरों सजावटी
कीमती सामान पहले ही थे