Last modified on 23 मार्च 2009, at 19:45

उस एक पल के लिए / सुकेश साहनी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 23 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुकेश साहनी |संग्रह= }} <Poem> बैठता ज़रूर है बंदूक प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बैठता
ज़रूर है
बंदूक पर कबूतर
चाहे एक पल के लिए
ढीली पड़ती
ज़रूर है
छुरे की मूठ पर पकड़
चाहे एक पल के लिए
ठिठकते
ज़रूर हैं
ख़ुदकुशी पर आमादा क़दम
चाहे एक पल के लिए
ज़वाबदेही
ज़रूर है
चाहे एक पल के लिए
धड़कता
ज़रूर है
घुन खाया उदास दिल
चाहे एक पल के लिए
ज़वाबदेही
हमारी भी है
दोस्तो !
उस–
एक पल के लिए
चाहें तो
उड़ा दें
तोपों से
या
चुरा–लें–नज़रें
या कि–
समेट लें
उस पल को
नवजात शिशु की तरह