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उस खुशी के दिन / नरेश अग्रवाल

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जैसे कोई संगीत को धुन बाँधती है हमें
या कोई तस्वीर अचानक प्रवेश कर जाती है ह्यदय मे
उस दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ था
वो रात कुछ ऐसी ही थी
अपनी अनन्त दूरी की चादर ले
सिमट कर आयी थी हमारे पास
इस तरह से ढका था हमें भूल जाएँ सारा प्रकाश
केवल हम दोनों हों
दो दिशाओं से उभरी हुई हवा का मिलना
या प्रकाश का प्रकाश से,
जहाँ भी बढ़ायें हाथ
छूते हों एक-दूसरे को
इतने अंधकार में भी
देख-सकते थे हम एक-दूसरे को
हम बढ़ते ही गये आगे और आगे
सारी दूरियाँ कम लगी
सारी गहराइयाँ कम
कहीं इच्छा नहीं थी रूकने की
कहीं इच्छा नहीं थी
यह सूर्य फिर से उगे
कोई न मिले हम से
को न देखे हमें
ओ काली रात
और गहरा ढकों हमें
और काला करो रंग अपना
ताकि कोई न खींचे पाँव हमारे
कोई न रोके मार्ग हमारा ।