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उस घाट का कोई नाम नहीं / संजय शाण्डिल्य

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यह रास्ता
जिस घाट तक जाकर
ख़त्म हो जाता है
उस घाट का कोई नाम नहीं

उसके क़रीब
कई घाट हैं नामों वाले

पर उस घाट का कोई नाम नहीं

उस घाट पर
एक मन्दिर है प्राचीन
नाम — शिव-मन्दिर
और बग़ल में
एक मस्जिद है मुगलकालीन
नाम — पत्थर की मस्जिद

रँग-रँग के पँछी हैं
उस घाट पर
सबके कुछ न कुछ नाम होंगे ज़रूर
उनकी भाषा में या हमारी भाषा में
अपने नामों के पँखों पर सवार
वे उड़ते होंगे सारे जहान में

भाँति-भाँति की सुन्दरियाँ
कई कारणों से वहाँ जमी रहतीं
बतियाती हुई एक-दूसरी से
नामों के आलोक में
अनेक बहानों से पुरुष
दिनभर जमघट लगाए रहते
नामों के सम्बोधन के साथ

उस घाट से
गुज़रती रहती नदी
उसके साथ
गुज़रता रहता उसका नाम
जो वहाँ आता है
नाम के साथ आता है
जो जाता है
नाम ही के साथ चला जाता है
रहनेवाला
नाम के साथ रहता आया है अनन्त काल से
सिवा उस घाट के
जिसका कोई नाम नहीं !