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उस तरफ तो तेरी यकताई है / फ़रहत एहसास

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उस तरफ तो तेरी यकताई है
इस तरफ़ में मेरी तनहाई है

दो अलग लफ़्ज नहीं हिज्र ओ विसाल
एक में एक की गोयाई है

है निशाँ जंग से भाग आने का
घर मुझे बाइस-ए-रूसवाई है

हब्स हैं मश्रिक ओ मग़रिब दोनेां
अब न पछवा है न पुरवाई है

घास की तरह पड़े हैं हम लोग
न बुलंदी है न गहराई है

जिस बयाबाँ में हूँ मैं आबला-पा
वो बयाबाँ मेरी सच्चाई है

उस की बातों पे ख़फा मत होना
‘फरहत’ एहसास तो सौदाई है